उसने आसमान की ओर मायूसी से देखा. काले घने बादल किसी अपशकुन की
तरह आकाश में घिर आए थे. उन्होंने कफ़न की
तरह तेजस्वी सूरज को चारों तरफ़ से ढँक लिया था जिसकी सलवटों से प्रकाश की किरणें बाहर
नहीं निकल पा रही थीं. भरी दोपहर में शाम घिर आने का भ्रम होता था.
तेज बारिश नहीं हुई थी उस दिन – सिर्फ हल्की फुहारें. पानी की नन्ही- नन्ही बून्दें
उसके घने बालों और हाथों के रोओं में अटी पडी थीं. कपडे अभी भीगे नहीं थे लेकिन गीलापन जैसे हड्डियों तक समा गया था. आकाश में हेलीकॉप्टर
इस तरह चक्कर काट रहे थे जैसे बियाबान में शिकार की खोज में उक़ाब मँडराते हैं. लेकिन
न तो यह कोई बियाबान था और न ही यहाँ किसी उक़ाब को अपने शिकार की तलाश! दरअसल वह अभी
अभी तेजपुर एयर फ़ोर्स स्टेशन के विस्तृत परिसर में दाखिल हुआ था. आसमान में उडते हेलीकॉप्टर
गुमशुदा मिग विमान की ‘सर्च सॉर्टी’ पर थे.
उसके साथ चल रहे सार्जेंट की उम्र बीस-बाइस साल से ज़्यादा नहीं होगी. फ़ौज की
नौकरी ने अभी उसके चेहरे पर वे सख़्त लकीरें पैदा नहीं की थीं जो एक सैनिक को आम
आदमी से अलग करती हैं. वह सुबह एयर फ़ोर्स स्टेशन के गेट पर उसे रिसीव करने आया था.
वहाँ से वे सीधा गेस्ट हाउस गए थे. अपना सामान वहाँ रख कर और फ़्रेश होने के बाद अब
वह सार्जेंट के साथ डेल्टा स्क्वॉड्रन के सी.ओ, ग्रुप कैप्टेन विजय हांडा से मिलने
जा रहा था. गुमशुदा मिग का पायलट, स्क्वॉड्रन लीडर तबरेज़ खान, जो उसका छोटा भाई था,
इसी स्क्वॉड्रन से था.
मिग की
गुमशुदगी के समाचार ने स्क्वॉड्रन में एक शोकपूर्ण कैफ़ियत तारी कर दी थी. आवश्यक
कारवाईयाँ शुरू हो गई थीं. किसी भारी-भरकम मशीन के पुर्ज़ों की तरह एयर फ़ोर्स
स्टेशन के विभिन्न अंग इस अप्रत्याशित घटना की प्रतिक्रियावश धीरे धीरे हरकत में आ
रहे थे. उसके वहाँ पहुँचने तक यह मशीन पूरी तरह सक्रिय हो चुकी थी. कमाण्ड ऑफ़िस
में टेलिफ़ोन की घंटी का निरंतर कोलाहल था. एयर फ़ोर्स पुलिस हाई एलर्ट पर थी. हेलीकॉप्टर
लगातार ‘सर्च सॉर्टी’ पर जा रहे थे. एयर फ़ोर्स टेलिफ़ोन एक्सचेंज दुर्घटना
सम्बन्धित कॉलों की अधिकता से जाम सा हो गया था.
“आपकी यात्रा कैसी रही?” अपने ऑफ़िस में
उसका स्वागत करते हुए सी.ओ ने पूछा और उसके जवाब का इंतज़ार किए बिना आगे बोला. “मुझे अफ़सोस है कि सुबह रेलवे स्टेशन पर आपको रिसीव
करने एयर फ़ोर्स से कोई नहीं जा सका.”
उसे ग्रुप कैप्टेन विजय हांडा की औपचारिक बातें उस समय अच्छी
नहीं लग रही थीं. वह भाई की खैरियत जानने के लिए बेचैन था. शायद वह किसी बडी मुसीबत
में हो. शायद अब भी मदद की कोई गुंजाइश हो.
“सी.ओ साहब, क्या तबरेज़ के मिग का कुछ पता चला?” उसने ग्रुप कैप्टेन
हांडा की ओर देखते हुए बेसब्री से पूछा.
“जी नहीं! अभी तक कोई सुराग़ नहीं मिला है. एयरफ़ोर्स के हेलिकॉप्टर कल से इलाक़े
का सर्वे कर रहे हैं लेकिन क्रैश साईट
लोकेट नहीं की जा सकी है.” सी.ओ की आवाज़ बिलकुल सपाट थी.
बाद में सी.ओ ने घटना के बारे में उसे विस्तार से बताया.
दो लडाकू मिग ‘एयर कॉम्बैट एक्सर्साइज़’ में शामिल थे. पहला विमान, जो डिफ़ेंसिव रोल
में था, बेस पर स्कुशल लौट आया था. लेकिन पीछा करने वाले मिग का कोई अता-पता नहीं
था. उस पर स्कवॉड्रन लीडर तबरेज़ खान एक ट्रेनी
पायलॉट को कॉम्बैट ट्रेनिंग दे रहे थे. शिलांग के टाइगर हिल पर स्थित राडार ने दस
बज कर पाँच मिंट तक इस विमान की लोकेशन दर्ज की थी. फिर वह अचानक स्क्रीन से गायब
हो गया था. प्रोटोकॉल के अनुसार तो लीड एयरक्राफ्ट को अपने साथी विमान की स्थिति
सुनिश्चित किये बिना वापस नहीं आना चहिए था. लेकिन यह एक प्रशिक्षण सॉर्टी थी और
आगे की विभागीय इंक्वाइरी में ऐसी कितनी ही ख़ामियाँ
सामने आने वाली थीं.
“हिमालय की तराई का यह इलाक़ा बडा ही दुर्गम है. घने जंगलों में
दुर्घटनाग्रस्त मिग का पता लगाना राई में सुई ढूँढने जैसा है.” सी.ओ ने उसे वस्तु-स्थिति से अवगत कराने की कोशिश की.
“लेकिन जंगलों की छान–बीन के लिए सेना की मदद तो ली जा सकती है.” वह अभी स्थिति
से समझौता करने के लिए तैयार नहीं था.
“आप अनुमान नहीं लगा सकते यहाँ के जंगल कितने बीहड
और जोखिम भरे हैं. एक वर्ग कि.मी. क्षेत्र के कॉम्बिंग ऑपरेशन में भी हफ़्तों का
समय लग जाएगा.”
“ज़रूरी तो नहीं कि मिग क्रैश हो गया हो. शायद तबरेज़ भारतीय
वायु सीमा से बाहर निकल गया हो और पडोसी देश के रक्षक विमानों ने उसे इंटरसेप्ट कर
अपने किसी बेस पर फ़ोर्स लैडिंग करवाया हो.” वह अब
भी आशा की डोर थामे था.
“नहीं! हमारी जानकारी के अनुसार ऐसी कोई सम्भावना नहीं है.”
“लेकिन यदि यह इलाका इतना दुर्गम है तो फिर आप क्रैश साइट कैसे ढूँढ पाएँगे?” उसने
चिंता से पूछा?
“कॉम्बैट एक्सर्साइज़ के दौरान दोनों विमानों की फ़्लाइट पाथ, राडार
डाटा के आधार पर ट्रेस करने की कोशिश की जा रही है. इससे हम क्रैश साइट का
सम्भावित दायरा छोटा कर पाएँगे और कॉम्बिंग ऑप्रेशन कम से कम समय में पूरा किया जा
सकेगा.” सी.ओ उसे योजना समझा रहा था.
“कितने दिनों में क्रैश साइट तक पहुँचने की आशा है ?” उसकी
आवाज़ में अब प्रतिरोध का कोई अंश शेष नहीं था.
“कहना कठिन है. शायद दो या तीन सप्ताह.... या फिर इससे भी
ज़्यादा.” ग्रुप कैप्टेन विजय हांडा ने कहा.
“ओह ! इस तरह तो बहुत देर हो जाएगी.” वह निराश हो कर बोला.
“एयर हेडक्वॉटर से थर्मल इमेजिंग के उपकरण एयर ड्राप करवाने की बात चीत हो रही
है. विमान दुर्घटना में समान्यतः फ़्यूल टैंक में भरे इंधन के कारण ज़ोरों की आग लग
जाती है और वहाँ का तापमान बढ जाता है. थर्मल इमेजिंग से उस स्थान का पता ठीक ठीक
लगाया जा सकता है. यदि उपकरण आ गए तो हम बहुत जल्द क्रैश साईट ढूँढ लेंगे.” सी.ओ.
ने उसे उम्मीद दिलाई.
कल की ही तो बात थी.
छुट्टी का दिन था. वह दोपहर का खाना खाकर अपने बिस्तर पर लेटा था. शायद उसकी आँख
लग गई थी. तभी फ़ोन की तेज़ घंटी की आवाज़ से उठकर वह बिस्तर पर बैठ गया था. फ़ोन की घनघनाहट
किसी सरकारी दफ़्तर के बाबू की बोली जैसी कर्कश थी. फ़ोन तबरेज़ की पत्नी का था. वह
बच्चों के साथ अपने मायके देहरादून में थी और उस समय बहुत परेशान थी.
“भैया, थोडी देर पहले एयर फ़ोर्स स्टेशन से सी.ओ. का फ़ोन आया था. आज तबरेज़ की कॉम्बैट
सॉर्टी थी. सॉर्टी के बाद उसका मिग बेस पर नहीं लौटा है.” इतना कहते कहते टेलिफ़ोन
पर ज़ोहरा की आवाज़ रुंध गई थी. एक एयर
फ़ोर्स ऑफ़िसर की पत्नी होने के नाते वह ऐसी स्थिति का मतलब खूब समझती थी.
“घबराओ मत. तबरेज़ को फ़्लाईंग का काफ़ी तजुर्बा है. हो सकता है उसे किसी दूसरे
बेस पर इमर्जेंसी लैंडिंग करनी पडी हो. वह जल्द ही लौट आएगा. और देखो.... तुम हिम्मत
से काम लो वरना तुम्हें परेशान देख कर बच्चे भी घबरा जाएँगे.” उसने ज़ोहरा को
समझाने की कोशिश की.
लेकिन बात तो घबराने वाली ही थी. अगर तबरेज़ वायु सेना के किसी दूसरे बेस पर इमर्जेंसी
लैंडिंग करता तो इसकी खबर अब तक तेजपुर पहुँच जाती. हाँ... यदि कॉम्बैट सॉर्टी के
दौरान उसका विमान भारतीय वायु सीमा से निकल कर चीन की सीमा में दाखिल हो गया हो....
और उनलोगों ने पूछ-ताछ करने के लिए उसे बन्दी बना लिया हो...... लेकिन उम्मीद की
यह बडी धुँधली सी किरण थी. मिग के क्रैश होने की सम्भावना ही अधिक थी. क्या क्रैश
के पहले उसे बेल-आउट करने का समय मिला होगा......? अगर हाँ, तो अब वह कहाँ है
.....? किस स्थिति में है ....? उसके दिमाग़ की नसों का तनाव बढने लगा था. वह अभी
इस दिशा में ज़्यादा नहीं सोचना चाहता था.
फ़ोन रखने से पहले उसने ज़ोहरा को दिलासा देते हुए कहा, “तुम अपना ख्याल रखना और
सी.ओ. से फ़ोन पर तबरेज़ के बारे में बराबर मालूम करती रहना. मैं आज ही एयर फ़ोर्स
स्टेशन के लिए रवाना हो रहा हूँ.” उसी रात वह गौहाटी की ट्रेन पर सवार हो गया था.
ट्रेन ने फिर गति पकड ली थी...... बर्थ पर पडे हुए कभी उसकी आँख लग जाती और
कभी वह हडबडा कर जाग जाता...... अनुमान लगाना कठिन था कि रात कितनी बाकी है......
ट्रेन की चाल में एक लय था और उसकी आवाज़ में एक ताल..... वह एक छोटा सा बच्चा था जो
अपने बिस्तर पर पडा था. माँ भी करीब ही लेटी थी और पास बैठा तबरेज़
उत्साह से कुछ कह रहा था. उसकी आवाज़ में, हमेशा की तरह किसी बात की जल्दी थी.
तबरेज़ उससे दो साल छोटा था. वे भाई कम, दोस्त ज़्यादा थे. साँझा बचपन था, साँझी
यादें थीं और जीवन की हर एक चीज़ में साझेदारी थी. एक ही साइकिल पर डबल राइडिंग
करते हुए वे स्कूल जाते थे. एक ही बिस्तर पर सोते थे. साथ खेलते थे, और जब मुहल्ले
के बच्चों से लडाई होती तो दोनों मिल कर मोर्चा सम्भालते. हद तो यह कि किशोर
अवस्था में एक ही लडकी से इश्क हुआ और एक दूसरे की खातिर शादी किसी ने नहीं की!
ट्रेन की चाल का लय टूट गया था...... अनिश्चित रात में, डरावनी आवाज़ें निकालती
वह झटके ले ले कर आगे बढ रही थी...... यह रेलगाडी नहीं एक टाइम मशीन थी जो समय और स्थान
की सरहदों को तोडती हुई कहीं और निकल गई थी...... बीते जीवन की घटनाएँ, एक के बाद
एक, उसकी नज़रों के सामने से कुछ इस तरह गुज़र रही थीं कि जैसे किसी फ़िल्म का ट्रेलर
हों.
स्कूल में गर्मी की छुट्टी हो चुकी थी. माँ सबको ले कर नानी के घर आई हुई थी.
नानी एक सीधी-सादी, क़द्दावर महिला थी. खुशमिज़ाज और ज़िन्दगी से भरपूर – जैसे कि अक्सर
गाँव के लोग हुआ करते हैं. वह जब खुश हो कर हँसती तो उसका सारा शरीर ज़ोर ज़ोर से
कुछ इस तरह हिलता जैसे बच्चे तना पकड कर बैर के किसी छोटे से पेड को, बैर गिराने
के लिए हिलाते हैं.
ननिहाल में बडा मज़ा आता था. नानी के आम के बहुत सारे बगीचे थे. गर्मी के दिनों
में इनकी अलग – अलग क़िस्मों से घर भर जाता था. पीले, पतले छिलके वाले खुश्बूदार
ज़र्दालू, गुद्देदार मालदय – जिसमे गुठली सिर्फ नाम भर होती थी, दिल लुभाने वाले बम्बई
– जिसके रेशेदार गुद्दे का मज़ा रूह को तर
कर दे और सदाबहार बीजू जो सबसे पहले आता और अंत तक बना रहता!
उस बार की गर्मी की छुट्टी का खास महत्व था. ईद का त्योहार भी इसी दौरान पड
रहा था. रमज़ान के रोज़े, नमाज़ की पाबन्दियाँ बडों के लिये और ईद की खुशियाँ बच्चों
के हिस्से में ! नए कपडे, मज़ेदार सेवईयाँ, खिलौने, गुलाबी धनिया और रुपयों से भरे
हुए बट्टू - बच्चों की छोटी सी दुनिया में दिल लुभाने के कितने सामान थे !
नानी अपने सभी नाती - पोतों के लिए नए कपडे बनवा रही थी. लडके या तो कलिदार
कुर्ता और पाजामा सिलवा रहे थे या फिर बंडी के साथ पठान सूट. लडकियों के लिए
अलबत्ता बहुत सारे विकल्प थे – शलवार-जम्पर, घाघरा-चोली, ग़रारा, शरारा, चूडीदार –
अल्लाह जाने और क्या क्या! बच्चों में होड सी लग गई थी. हर बच्चा सबसे शानदार
दिखना चाहता था.
लेकिन एक परेशानी थी. तबरेज़ की पसन्द सब बच्चों से अलग थी. उसे तो बॉटल ग्रीन मिलिट्री
युनिफ़ार्म सिलवानी थी - कैप वग़ैरह के साथ. दस साल के बच्चे के लिए यह एक अनोखा
चुनाव था. परिवार के बडे बूढों के बीच इस मुद्दे पर एक ज़ोरदार बहस छिड गई – क्या
ईद के मौके पर मिलिट्री युनिफ़ार्म मुनासिब पहनावा है? क्या इसे पहन कर नमाज़ अदा की
जा सकती है?
तबरेज़ किसी समझौते के लिए तैयार नहीं था. फ़ौजी बनने का शौक उसे बहुत छोटी उम्र
से था. इस खास मौके पर वह मिलिट्री ड्रेस ही सिलवाना चाहता था. अंततः नानी ने ही
समझा-बुझा कर सब को राज़ी किया. तबरेज़ को जो चाहिए था वह मिल गया. वह मिलिट्री यूनिफ़ार्म में
नमाज़ पढने ईदगाह गया और वहाँ से लौटकर अपने दिवंगत नाना की दुनाली बन्दूक लेकर,
पूरे सैनिक आन-बान में तस्वीर भी खिंचवाई!
स्लीपर बर्थ पर उसने फिर करवट बदली.......वह एक विशाल समुन्द्र में किसी टूटे तख़्ते
पर पडा था....... तख़्ता समुन्द्र की दैत्याकार लहरों के साथ कभी डूबता तो कभी उतरता......
लहरों की गगन चुम्बी ऊँचाइयों पर पहुँच कर वह गहन निन्द्रा से जाग उठता..... और उतरती
लहरों की पाताल जैसी गहराईयों में पहुँच कर वापस गहरी नींद में डूब जाता....... लहरों के विपरीत चरम बिन्दु जैसे सृष्टी को परिभाषित कर रहे
थे....... एक ओर इसका उद्गम था और दूसरी ओर था इसका अंत........ और इन दोनों के बीच फैला था रहस्यमय मानव जीवन - अपनी
सारी विलक्षणताओं और अपूर्णताओं के साथ !
फ़िल्म का ट्रेलर अभी चालू था. आँखों के सामने अब
दूसरा दृश्य था. ड्राइंग रूम में बैठा वह सुबह का अखबार पलट रहा था. हवा में ठंडक
थी. ज़िन्दगी वह रेलगाडी थी जो स्टेशन से छूटने के बाद अब एक स्थिर गति प्राप्त कर
चुकी थी. हर अगला दिन बीते हुए कल जैसा था. तबरेज़ ने एन.डी.ए से पास आउट होने के
बाद कलाइकुंडा में पहली पोस्टिंग ज्वॉयन की थी. वह खुद भी जीवन में ‘सफल’ हो कर एक
बैंक में प्रोबेशनरी अधिकारी नियुक्त हुआ था. यह वह समय था जब विद्यार्थी कोई
मनपसन्द नौकरी पाने की चेष्टा नहीं करते थे. वे हर ऐसी परीक्षा देते जिसमे नौकरी
मिलने की थोडी सी भी उम्मीद हो और तब तक देते रह्ते थे जब तक कि उनकी नैया पार न
लग जाए. जीव-विज्ञान के छात्र अकसर गणित एक्सट्रा रखते ताकि वे मेडिकल इंट्रेन्स
के साथ साथ इंजिनीयरिंग की प्रवेश परीक्षा में भी बैठ सकें. समय का यही तकाजा था.
नौकरी कोई भी अच्छी थी जो परिवार को पेट भर खाना मुहैया करा दे - दिन के तीन वक्त –
हफ्ते के सात दिन !
अचानक अख़बार के
फ्रंट पेज के बाँए हाशिये पर छ्पी एक ख़बर ने उसका ध्यान आकर्षित किया. ‘मिग-21
दुर्घटनाग्रस्त’. उसके दिल की धडकन जैसे रुक गई. तबरेज़ वायु सेना के ‘रशियन स्ट्रीम’
में था. वह कलाईकुंडा में मिग ही उडाता था. उसने जल्दी से पूरी ख़बर पढी. दुर्घटना
भारत-बांग्लादेश सीमा के पास हुई थी. आश्चर्य यह कि अखबार में दुर्घटनाग्रस्त
विमान के पायलॉट का नाम भी छपा था. उस का डर सच साबित हुआ था. वह तबरेज़ ही था. समाचार
के अनुसार फ़्लाईंग ऑफ़िसर तबरेज़ दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हुए थे और इंटेंसिव
केयर में थे.
उसने फुर्ती से काम लिया था. माता-पिता को तत्काल कुछ बताना ठीक नहीं था. ऑफ़िस
से आक्स्मिक छुट्टी ले कर वह दूसरे ही दिन कलाइकुंडा पहुँच गया था. एयर फ़ोर्स
स्टेशन के मेन गेट पर कलफ़दार क्रीज़ युक्त कपडों में सशस्त्र गार्ड खडे थे. प्रशिक्षित
शिष्टाचार से उसे इंतज़ार करने को कहा गया. उन दिनों तबरेज़ की शादी नहीं हुई थी. वह
बैचेलर्स क्वार्टर्स में अकेला रहता था. उसके आने की सूचना स्कवॉड्रन को दे दी गई
थी. थोडी ही देर में तबरेज़ मुस्कराता हुआ उसे लेने पहुँच गया. सुखद आश्चर्य के
अद्भुत क्षण थे. तबरेज़ बिल्कुल स्वस्थ था.
दोनों ऑफ़िसर्स मेस के पास बैचेलर क्वार्टर्स पहुँचे. अख़बार की ख़बर गलत नहीं
थी. रूटीन सॉर्टी के दौरान तबरेज़ के मिग का इंजिन फ्लेम आउट हो गया था. इंजिन को सक्रिय
करने के उसके सारे प्रयास विफल रहे थे. बिल्कुल आखिरी क्षणों में उसने विमान से
बेल-आउट किया था. यह एक टेक्स्ट-बुक इजेक्शन था – हर दृष्टि से प्रफ़ेक्ट. उसे एक
खरोंच तक नहीं आई थी. लेकिन ख़तरा अभी टला नहीं था. कहानी में ट्विस्ट था. संकट बिल्कुल
अप्रत्याशित रूप में आया था.
तबरेज़ का पैराशूट भारत-बांग्लादेश सीमा के पास एक धान के खेत में गिरा था. मिग
क्रैश के धमाके ने गाँव के लोगों को सचेत कर दिया था. कुछ गाँव वालों ने गिरते हुए
पैराशूट को भी देखा था. नीचे गिरने के बाद जब तबरेज़ अपने आप को पैराशूट के
स्ट्रैपों से मुक्त कर रहा था; गाँव के लोग उसके चारों तरफ जमा होने लगे थे. वे
लोग उसकी ओर बडे कौतुहल से देख रहे थे. उसकी हर एक गतिविधी पर ध्यान रखे हुए थे.
भीड में से किसी ने उसके युनीफार्म पर लगा उसका नेमप्लेट ज़ोर से पढा. यूनिफ़ार्म पर
बोल्ड अक्षरों में ‘फ़्लाईंग ऑफ़िसर तबरेज़ खान’ लिखा था. अचानक वह व्यक्ति ज़ोर ज़ोर
से चिल्लाने लगा, “ओ माँ..... ए तो
पाकिस्तानी आछे..... दैखो, दैखो....एर नाम खान..... मारो..... शाला के मारो ...!”
भीड पास आने लगी. माहौल गर्म होने लगा. कुछ लोगों ने पीछे भाग कर लाठी और हसुओं
से अपने को लैस कर लिया. अब वे आक्रमक मुद्रा में आगे बढ रहे थे. तबरेज़ को खतरे की
गंभीरता समझने में देर नहीं लगी. वह संयम रखते हुए उन्हें समझाने की कोशिश करने लगा.
“देखो भाई! मैं कोई पाकिस्तानी घुसपैठिया नहीं भारतीय वायु सेना का अधिकारी हूँ.”
लेकिन उसकी बातों
का कोई असर होता नहीं दिखता था. उसका नाम उसके पाकिस्तानी होने का पक्का सबूत था. किसी
पाकिस्तानी जासूस की बातों पर भला कोई यकीन क्यों करे? भीड उसका संहार करने को आतुर
थी. अब कुछ भी हो सकता था. उसे फ़ौरन इस खतरे से निकलने का रास्ता ढूँढना था.
अचानक उसे पैराशूट के सेफ़्टी किट का ख्याल आया. लपक कर उसने ग्लेयर पिस्तौल निकाला
लिया और आक्रमक भीड पर निशाना साध कर गरजा, “खबरदार! अगर कोई एक क़दम भी आगे बढा तो
गोली मार दूँगा.” उसकी आक्रमक मुद्रा और हाथ के विचित्र से दिखने वाले हथियार से
ग्रामीण डर कर ठिठक गए थे.
“चलो एकदम पीछे
हटो. तुम्हारा मुखिया किधर है? फ़ौरन उसे बुला कर लाओ. मुझे उससे ज़रूरी बात करनी
है.” अब तबरेज़ स्थिति को पूरी तरह अपने क़ाबू में ले चुका था. मौत के डर ने भीड के
मन में उसके लिए आदर का भाव पैदा कर दिया था. मुखिया को तुरंत बुलाया गया. न्यायपूर्ण
आचार और समझदारी की बातें अक्सर आतंक की स्थिति और डर की मजबूरी में पैदा होती
हैं. शक्ति की पूजा और बलवान की गुलामी हमारे अंतर्मन की गहराईयों में कहीं आज भी मौजूद
है.
मुखिया के आने पर तबरेज़ ने उसे तुरंत पुलिस बुलवाने के लिए यह कह कर राज़ी कर
लिया कि यदि वह पाकिस्तानी जासूस था तो पुलिस ही उस पर उचित कारवाई करने में सक्षम
होगी. लोकल पुलिस को मिग क्रैश कि सूचना पहले ही मिल चुकी थी. तबरेज़ की स्थिति का
पता चलते ही वे तुरंत उसे लेने घटना स्थल पर पहुँच गए. किस्सा मुख़्तसर यह कि देश
की पुलिस ने वायु सेना के फ़ाईटर पायलॉट की रक्षा उसके अपने ही देशवासियों से की!
कोई दरवाज़ा खटखटा रहा था. ज़ोर दे कर उसने अपनी आँखे खोली और अनिश्चयता से
दरवाजे की ओर देखने लगा. दिमाग़ बिल्कुल खाली था. कुछ देर के लिए तो उसकी समझ में ही
नही आया कि वह कहाँ है, फिर धीरे धीरे स्थिति का एहसास हुआ. पिछला पूरा दिन डेल्टा
स्क्वॉड्रन के सी.ओ., ग्रुप कैप्टेन विजय हांडा से मिलने और बात करने में बीता था.
दुर्घटना के बाद भाई के क्वार्टर को नियमानुसार सील कर दिया गया था. उसके बीवी -
बच्चे अभी देहरादून में ही थे. उनसे कहा गया था कि जब तक गुमशुदा मिग का पता न चल
जाए तब तक एयरफ़ोर्स स्टेशन न लौटें. रात एयर फ़ोर्स के गेस्ट-हाउस में बडी बेचैनी से
कटी थी.
उसने बिस्तर से उठ कर दरवाज़ा खोला. गेस्ट-हाउस का केयर टेकर रतन सिंह था. “सार्जेंट
साहब मिलने आये हैं.” उसने बताया,
सार्जेंट विक्रम राना, जो पहले दिन से ही उसका एस्कार्ट था, लॉबी में इंतज़ार
कर रहा था. बडा खुशमिज़ाज बन्दा था. ज़िंदगी से भरपूर, किसी भी काम के लिए सदा तत्पर.
उससे मिल कर दिल को सुकून मिलता था.
“रतन सिंह.... दो कप ब्लैक टी मिल सकती है क्या?” उसने केयर टेकर को पुकार कर
कहा और एक ईज़ी चेयर खींच कर लॉबी में सार्जेंट के क़रीब ही बैठ गया.
“खान सर के कुछ साथी ‘कर्टसी कॉल’ में आज आप से मिलना चाहते हैं.” सार्जेंट ने
उसे बताया.
“मैं गेस्ट हाउस में ही हूँ. वे जब चाहें आ सकते हैं.” उसने कहा और फिर युवा
सार्जेंट से उसके गाँव - परिवार के बारे में बातचीत करने लगा. सार्जेंट विक्रम
राना की बातें सुन कर इंसानी फ़ितरत की मौलिक अच्छाई वाली फ़िलॉसफ़ी पर एकदम से
विश्वास हो जाता था.
“साहब ! .... ख़ान सर को भी ब्लैक टी पसन्द थी. वह जब कभी यहाँ आते..... मुझसे
ब्लैक टी ही बनवा कर पीते थे.” रतन सिंह चाय की ट्रे टेबल पर रखते हुए उदास लहजे में
बोला.
उसने कोई जवाब नहीं दिया और चाय के कप में चीनी के क्यूब डालने लगा.
“मैं तो आप को देख कर पहले दिन ही समझ गया था कि आप खान सर के भाई हैं.” रतन
सिंह ने अपनी बात जारी रखी.
यह एक अजीब बात थी. दोनों भाईयों की शक्लें बिल्कुल नहीं मिलती थी लेकिन तबरेज़
को जानने वाले उसमें तबरेज़ का अक्स ढूँढ ही लेते थे.
“आपका भाई एक जाँबाज़ ऑफ़िसर था....और एक बहुत ही अच्छा इंसान. मैंने इस स्टेशन
पर अपनी आधी ज़िन्दगी गुज़ारी है.... सैंकडो ऑफ़िसर देखे हैं.... लेकिन स्क्वॉड्रन
लीडर तबरेज़ खान जैसा कोई नहीं देखा.”
“वे एक एक्सपर्ट फ़ाईटर पायलॉट थे. नए ऑफ़िसरों को ले कर फ़्लाईंग सॉर्टी पर जाते
तो उनका बडा ध्यान रखते.” सार्जेंट विक्रम राना चाय का कप उठाता हुआ बोला.
“सार्जेंट साहब! गामा स्क्वॉड्रन की पिछ्ले साल वाली घटना आपको याद है? कितनी
दुर्भाग्यपूर्ण बात थी. विंग कमांडर गुप्ता नए पायलॉट ऑफ़िसर को ले कर ट्रेनिंग
सॉर्टी पर गए थे. विमान में कुछ तकनीकि खराबी होने पर बिना उसकी जान की परवाह किए
खुद बेल आउट हो गए और बेचारा पायलॉट ऑफ़िसर क्रैश में मारा गया.” रतन सिंह पूरी बात
एक सांस में कह गया.
“हाँ! उस समय मिग काफ़ी ऊँचाई पर था. विंग कमांडर गुप्ता उसे लैंड कराने की
कोशिश कर सकते थे. लेकिन आपात्कालीन स्थिति में वह पैनिक में आ गए थे. इस घटना के
बाद से तो उनका नर्वस ब्रेकडाउन हो गया. महीनों कमांड हॉस्पीटल में साईकैट्रिक
इलाज के बावजूद वह फिर कभी फ़्लाईंग नहीं कर सके.” सार्जेंट ने पूरी बात बताई थी.
उसे याद आया. कलाईकुंडा की घटना के बाद
उसने तबरेज़ से फ़्लाईंग ब्रांच छोड कर ग्राउंड ड्युटी ज्वॉयन कर लेने के लिए बहुत कहा
था. लेकिन तबरेज़ हँस कर उसकी बात टाल गया था. उसका कहना था कि ग्राउंड ड्युटी तो वही
पायलॉट करते हैं जो बीमारी या किसी दुर्घटना के कारण फ़्लाईंग के लिए अनफ़िट हो गए
हों. उसे यह बात मंज़ूर नहीं थी कि कोई ऑफ़िसर सिर्फ़ फ़्लाईंग के खतरों की वजह से फ़्लाईंग
छोड कर ग्राउंड ड्यूटी पर चला जाए.
फ़्लाईंग तबरेज़ की रोज़ी रोटी ही नहीं उसका ‘पैशन’ भी था. खुले आसमान में
कलाबाज़ियाँ खाते हुए उसने आज़ादी और सुकून के जिन लम्हों को महसूस किया था वे शायद ज़िंदगी
की दूसरी घडियों में इंसान को मयस्सर नहीं हैं. थ्रौटल स्टिक के एक इशारे पर इंजन में
हज़ार घोडों की शक्ति झोंक देने से अचानक पैदा होने वाले त्वरण के रोमांच से उसकी
नसें वाक़िफ़ थीं. उसे मालूम था गुरुत्वाकर्षण के विरुध किसी रॉकेट की तरह आसमान में
सीधा टेक ऑफ़ करते हुए दिमाग़ की शिराओं में एकत्र खून का सुरूर क्या होता है.
चाय पीने के बाद सार्जेंट ड्यूटी पर चला गया. रतन सिंह ने उसे जल्दी से फ़्रेश
होने के लिए कहा ताकि वह उसके लिए नाश्ता लगा सके. नाश्ता करने के बाद वह थोडी देर
के लिए गेस्टहाउस से बाहर निकला. उसे घर फ़ोन करना था. रतन सिंह ने उसे बताया था कि
गेस्ट हाउस से कुछ ही दूर पर एयर फ़ोर्स कैंटीन है और उसके पास ही एक टेलिफ़ोन बूथ
और धोबी का स्टॉल. वह टहलता हुआ जल्द ही वहाँ पहुँच गया. फ़ोन करने के बाद वह टेलीफ़ोन
बूथ से बाहर निकला. तभी किसी ने उसे आवाज़ दी, “साहब !”
उसने मुड कर पीछे देखा. धोबी के स्टॉल पर खडा एक आदमी, जो शायद धोबी ही था, उसकी
तरफ़ आ रहा था.
“आप खान सर के भाई हैं ना?” उसने पूछा.
“हाँ ! लेकिन बात क्या है?” किसी अजनबी द्वारा तबरेज़ के भाई के रूप में पहचाने
जाने पर आज वह दूसरी बार अचंभित हुआ था.
“जी... बस.... मैने सुना था कि ख़ान सर के भाई गेस्टहाउस में रुके हुए हैं. आप
को देखते ही मैं समझ गया कि आप ही हैं. शाम को गेस्टहाउस आता हूँ वहीं आप से बात
करूँगा.”
‘पता नहीं वह क्या बात करना चाहता है?’ वापस लौटते हुए उसने
सोचा.
क़रीब चार बजे डेल्टा स्क्वॉड्रन से तबरेज़ के पाँच साथी गेस्टहाउस आए और बडे
अपनेपन से उससे मिले. सब दुखी थे. बात समझ मे आती थी. यह घटना बिलकुल उनके बीच की
थी. तबरेज़ की जगह उनमें से कोई भी हो सकता था.
“ख़ान सर वाज़ ऐन एस फ़ाईटर पायलॉट..... एंड वेरी पॉपुलर अमॉंग द ट्रेनीज़......”
फ़्लाईट लेफ़्टिनेंट कार्तिकेयन ने कहा.
“वेल.....! दि सिचुएशन दैट डे वाज़ टफ़ इवेन फ़ॉर दी बेस्ट इन दी ट्रेड” यह बात स्क्वॉड्रन
लीडर सुशीलेन्द्र राव ने कही. राव तबरेज़ का बैचमेट था. एन.डी.ए के 61वें कोर्स से
दोनों साथ साथ पास आउट हुए थे.
“उस दिन दो मिग कॉम्बैट मैन्युवर पर गए थे. मौसम अचानक ख़राब हो गया था.
विज़िबलिटी मुश्किल से 500 मीटर रही होगी.” फ़्लाईट लेफ़्टिनेंट कार्तिकेयन ने आगे बताया.
“पीछा करने वाले मिग पर स्क्वॉड्रन लीडर ख़ान और ट्रेनी पायलॉट डोगरा थे. उनका
लक्ष्य आगे भागते मिग को स्ट्राइक डाउन रेंज में लेना था.” स्क्वॉड्रन लीडर गुरमीत
सिंह ने कार्तिकेयन की बात पूरी की.
“घटना के समय मिग कौन उडा रहा था? – तबरेज़ या ट्रेनी पायलॉट?” उसने जानना
चाहा.
“ट्रेनिंग के दौरान फ़्लाईंग तो ट्रेनी ही करता है लेकिन ज़रूरत पडने पर पीछे बैठा
ट्रेनर सारे इमर्जेंसी कंट्रोल ऑपरेट कर सकता है.” गुरमीत सिंह ने जवाब दिया.
“इस तरह के कॉम्बैट मैन्युवर में आगे भागते फ़ाईटर की पोज़ीशन एडवांटेज वाली होती
है. उसे सामने से आने वाला कोई भी खतरा पहले नज़र आता है और यदि वह उससे बचने का
मैन्युवर बिल्कुल अंतिम क्षणों में करे तो हो सकता है कि पीछा करने वाले फ़ाईटर को
ख़तरे का पूर्वानुमान न हो पाए और जब तक उसे खतरे का आभास हो बचाव करने के लिए बहुत
देर हो चुकी हो. संभव है पायलॉट ऑफ़िसर डोगरा के सामने ऐसी ही स्थिति आई हो.”
स्क्वॉड्रन लीडर सुशीलेन्द्र राव ने कहा.
“हाँ इस बात की पूरी संभावना है.” गुरमीत सिंह ने सहमति जताई.
“मिग में पायलॉट और इंसट्रक्टर सीट एडवांस जेट ट्रेनर की तरह अलग अलग ऊँचाई पर
न हो कर आगे – पीछे एक ही लेवेल पर होते हैं. पायलॉट सीट सामने होने के कारण इंसट्रक्टर
का फ़्रंट व्यू कुछ हद तक बाधित होता है. इसलिए आने वाले खतरे को देख पाना तबरेज़ के
लिए और भी कठिन रहा होगा.” स्क्वॉड्रन लीडर सुशीलेन्द्र राव ने जैसे घटनाक्रम की
एक तस्वीर सी खींच दी थी.
“दूसरे मिग का पायलॉट कौन था?” उसने राव से पूछा.
“फ़्लाईट लेफ़्टिनेंट विपुल चौधरी.” राव ने बताया. विपुल चौधरी वहाँ मौजूद नहीं
था. यह बात उसे कुछ अजीब लगी. वह उससे मिलने क्यों नहीं आया था? कहीं ऐसा तो नहीं
कि कॉम्बैट एक्सर्साइज़ के दौरान चरम प्रतिस्पर्धा की भावना में बह कर उसने जान बूझ
कर ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि पीछे आने वाला मिग दुर्घटनाग्रस्त हो गया – वैसी ही स्तिथि जिसका
वर्णन सुशीलेन्द्र राव अभी अभी कर रहा था....? नहीं नहीं..... ऐसा तो नहीं होना
चाहिए.... वह बिना ज़रूरत हर एक बात को शंका की दृष्टी से देख रहा है. उस दिन वहाँ आने
वाले ऑफ़िसरों में स्टूडेंट सा दिखने वाला एक नया ट्रेनी भी था. वह चुपचाप बैठ कर
बस सबकी बातें सुन रहा था.
“राव साहब ! क्या ऐसी संभावना है कि चीन ने अपनी वायु सीमा
में भूलवश प्रवेश करने के कारण तबरेज़ को अपने किसी बेस पर उतरने को मजबूर कर बन्दी
बना लिया हो.” उसने सुशीलेन्द्र राव की ओर उम्मीद भरी नज़रों से देखा.
“उस दिन ऐसी संभावना नहीं थी.” राव
ने कहा.
“लेकिन क्यों ?” उसने अधीरता से पूछा.
“किसी सार्टी के लिए मिग में लगभग 45 मिनट का इंधन होता है.
राडार पर अंतिम बार दिखे जाने तक तबरेज़ लगभग 40 मिनट की सॉर्टी पूरी कर चुका था. उसके
पास सिर्फ़ 5-6 मिनट का इंधन शेष रहा होगा. उस लोकेशन से किसी भी पडोसी देश के निकटतम
बेस की दूरी कम से कम 25 से 30 मिनट की है. इतने कम इंधन में तबरेज़ का वहाँ तक
पहुँचना संभव नहीं है.”
बातचीत के दौरान ट्रांसपोर्ट पायलॉट फ़्लाईट लेफ़्टिनेंट रंजीत मेहरा ने एक नई
बात बताई. दुर्घटना के दिन लगभग दस बजे उसके किसी साथी ने अपने हेलिकॉप्टर के रेडियो
पर एक कॉल सुनी थी. कॉल करने वाला एयर कंट्रोल टावर को कॉनटैक्ट करने की कोशिश कर
रहा था. पायलॉट अक्सर एयर कंट्रोल टावर से मार्गदर्शन के लिए संपर्क करते हैं. लेकिन
अजीब बात यह थी कि जिस फ़्रिक्वेंसी पर यह कॉल किया गया था वह कंट्रोल टावर से
संपर्क के लिए प्रयुक्त होने वाली फ़्रिक्वेंसी नहीं थी. इस फ़्रिक्वेंसी पर तो साथ
उडने वाले विमानों के पायलॉट एक दूसरे से संपर्क स्थापित करते हैं. इसका क्या मतलब
हो सकता था? कॉल का वक़्त तो बिल्कुल वही था जब राडार से तबरेज़ का मिग लापता हुआ
था.
उसने तबरेज़ के साथियों से स्थिति समझने की कोशिश की. अनेक सम्भावनाएँ थीं. पहली
यह कि मिग के संचार यंत्र में उत्पन्न किसी खराबी के कारण विवशता में इस फ़्रिक्वेंसी
का इस्तेमाल किया गया था. या फिर उन कातर छ्णों में कंट्रोल टावर पर किसी के
द्वारा कॉल रिसीव नहीं करने की स्थिति में मजबूरन दूसरी फ़्रिक्वेंसी पर डिस्ट्रेस
कॉल भेजा गया था. एक और सम्भावना थी - शायद आपात स्थिति के दबावपूर्ण अंतिम छ्णों
में मिग के पायलॉट से कॉल के लिए उपयुक्त फ़्रिक्वेंसी चुनने में ग़लती हो गई हो.
बात चीत ख़त्म होने के बाद लौटते समय सुशीलेन्द्र ने उससे रात अपने घर खाने का आग्रह
किया. किसी के घर दावत पर जाने का मन तो उसका नहीं था. लेकिन खाना तो बहरहाल गेस्टहाउस
में भी था. जब राव ने ज़ोर दे कर कहा कि उसकी बीवी उनलोगों के लिए सादा, रोज़ जैसा खाना
ही बनाएगी तो वह उसे मना नहीं कर पाया.
राव ठीक आठ बजे अपनी गाडी से उसे लेने आया. ऑफ़िसर्स रेज़िडेंटियल एरिया के बी
विंग तक पहुँचने में उन्हें ज़्यादा समय नहीं लगा. कार से उतरते हुए राव ने हाथ के
इशारे से उसे दिखाया कि तबरेज़ का क्वार्टर, जिसे सील कर दिया गया था, उसके
क्वार्टर के ठीक सामने वाला है.
“नमस्ते भाई साहब !” डोर बेल की आवाज़ सुन कर सुशीलेन्द्र की पत्नी, जया ने
दरवाज़ा खोला. जवाब में उसने मुस्करा कर बस सर हिला दिया. उन्हें ड्राईंग
रूम में सोफ़े पर बिठा कर जया किचेन में चली गई. दस साल का उनका बेटा नरेन अपने रूम
में कम्प्यूटर गेम खेल रहा था.
ड्राइंग रूम को बडे सुरुचीपूर्ण ढंग से सजाया गया था. टीवी कैबिनेट, शो केस और
बुक शेल्फ़ अलग अलग थे लेकिन बनवाए इस कारिगरी से गए थे कि एक तरफ़ की दीवार से लगा
कर रख देने पर सिंगल पीस मालूम होते थे. ज़ाहिर था ऐसा तबादले वाली नौकरी की
ज़रूरतों को ध्यान में रख कर किया गया था.
शो केस के ऊपर वाले खाने में ट्राफ़ियाँ और कप बडे क़रीने से रखे गए थे. उसके
नीचे के छोटे छोटे खानों में विभिन्न फ़ाईटर विमानों के सुन्दर रेपलिका थे. बीच में
टीवी कैबिनेट था और उसके दहिनी तरफ़ बुक शेल्फ़, जिसमें रखी हुई किताबें घर में रहने
वालों की रुचि का परिचय दे रही थीं. ड्राईंग रूम की इसी दीवार के सामने सोफ़ा सेट
था जिस पर वे बैठे थे. सोफे के दूसरी ओर चार कुर्सियों वाला एक खूबसूरत सा डाईनिंग
सेट लगा था.
जया किचेन से एक ट्रे में शर्बत से भरे हुए तीन गिलास ले कर आई और सेंटर टेबुल
पर रख कर अपने पति के पास ही सोफ़े पर बैठ गई. सुशीलेन्द्र ने आगे की ओर झुक कर शरबत
का गिलास उसकी ओर बढाया और कहने लगा.
“जो हुआ उस पर अब भी विश्वास नहीं होता. उस दिन जया, नरेन को लेकर उसके स्कूल के
ओपेन डे में गई हुई थी. फ़्लाईंग के लिए मैं तबरेज़ के साथ ही बेस पर पहुँचा था. लेकिन
तभी कमांड ऑफ़िस से मुझे किसी काम से गौहाटी जाने का आदेश आया. लौटना शाम तक ही
संभव था. जाने से पहले मैंने अपने क्वार्टर की चाभी तबरेज़ को दे दी थी ताकि जया के
स्कूल से लौटने पर वह उसे दे दे. सॉर्टी पर जाते वक़्त चाभी तबरेज़ के जेब में थी और
आज तक उसके ही पास है. उस रात हमलोगों को अपने घर का ताला तोडना पडा था. सारी रात
ज़ोरों की बारिश हुई थी और हम बिस्तर पर पडे जागते रहे थे.”
“ज़िन्दगी भी कितनी अजीब चीज़ है.” वह जैसे अपने आप से बोला, “सामाँ है सौ बरस
का.... कल की खबर नहीं है !”
“आप नहीं जानते हमलोगों ने कैसा महसूस किया था उस दिन. मॉनसून के पहले की वह
आखिरी सौर्टी थी. मौसम खराब हो चला था. बादल घिर आए थे. शायद वह सौर्टी के लिए
उपयुक्त दिन नहीं था !” सुशीलेन्द्र ने अवसाद भरे स्वर में कहा.
“भाई साहब! जब यहाँ
फ़्लाइंग शुरु होती है उन दिनों किसी भी काम में मेरा मन नहीं लगता. हर शाम मैं
यहाँ सोफ़े पर तब तक चुपचाप बैठी रहती हूँ जब तक कि सुशील घर वापस नहीं आ जाते.”
जया ने अपने दिल की बात बताई.
“मैं आप की कैफ़ियत समझ सकता हूँ.” वह धीरे से बोला.
“रन वे यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है. हर बार जब कोई मिग टेक
ऑफ़ या लैंड करता है तो इतनी तेज़ और गरजदार आवाज़ होती है कि दिल दहल जाता है.....
आप को शायद यह अजीब लगेगा..... लेकिन हर शाम जब मिग एक एक कर टेक ऑफ़ करते हैं तो मैं
मन ही मन इनकी गिनती करती रहती हूँ..... और जब सॉर्टी पूरी करने के बाद वे लैंड
करने लगते हैं तो मैं हिसाब लगाती हूँ कि सारे लौट कर आ गए कि नहीं..... दिस हैज़
बिकम ए स्ट्रेंज हैबिट फ़ॉर मी.” जया की आवाज़ में रात की उदासी घुल गई थी.
अचानक उसे एहसास हुआ कि जिस तडप को वह विगत कुछ दिनों से
महसूस कर रहा है, उसे जया ने हर उस उदास अकेली शाम में भोगा है जो उसने अपने पति
के फ़्लाइंग से लौट कर आने के इंतज़ार में, मिगों की गिनती करते हुए गुज़ारी है. जया
उसे अपने बहुत करीब लगी. वह उसकी पीडा की साझेदार थी.
“डोंट टेक हर टू सीरियसली.....! वरना वह यह भी दावा करेगी
कि मिग के लैंडिंग की आवाज़ भर से वह जान जाती है कि वह मैं हूँ या कि कोई और
पायलॉट !” सुशीलेन्द्र ने यह कह कर माहौल हल्का करने की कोशिश की थी.
“मैं आपलोगों के लिए खाना लगाती हूँ.” जया ने सेंटर टेबुल
से गिलास और ट्रे उठा लिया और किचेन में चली गई.
थोडी देर के लिए ड्राइंग रूम में बिल्कुल खामोशी छा गई.
सिर्फ़ नरेन के कम्पयूटर गेम की आवाज़ बीच बीच में आ जाती थी.
“मिग क्रैश की घटनाएँ आजकल बहुत हो रही हैं.” उसने चुप्पी
तोडी.
“हूँ.....!” सुशीलेन्द्र ने हामी भरी.
“पता नहीं इतनी अधिक दुर्घटनाओं का क्या कारण है.”
“कारण तो बहुत हैं और इनका पता भी लोगों को है.”
“मीडिया में यह बहस छिडी है कि दुर्घटनाएँ ‘ह्युमन एरर’ की वजह से हो रहीं हैं
या ‘मैशीन एरर’ के कारण.” उसे टी. वी. पर देखा हुआ एक प्रोग्राम याद आ गया.
“किसी फ़ाईटर प्लेन
में ध्वनि कि गति से उडते हुए ज़िंदगी और मौत के बीच बस कुछ ही छ्णों का फ़ासला होता
है. ऐसी अनेक स्थितियाँ आती हैं जब सेकंड के दसवें हिस्से में लिया गया पायलॉट का
फ़ैसला यह तय करता है कि वह वापस बेस पर लौटेगा भी या नहीं!” सुशिलेन्द्र उसे फ़्लाईंग
की बारीकियाँ बता रहा था.
“लेकिन यदि विमान में अचानक कोई खराबी आ जाए तो अपनी सारी योग्यताओं के बावजूद
भी कोई पायलॉट क्या कर सकता है!” उसने दूसरा पक्ष रखा. वह ‘मशीन एरर’ की बात कर रहा
था.
तबरेज़ ने एक बार रशियन मिगों की तुलना योरोपियन फ़ाईटरों से करते हुए बडे गर्व
से उसे बताया था, ‘मिग बिल्कुल रशियन ग्रामीणों की तरह हैं - मज़बूत और जुझारू !
उनकी बनावट अगरचे बेढब सी होती हैं..... बॉडी पर शायद आपको यहाँ - वहाँ बेतरतीबी
से लगे हुए नट और बोल्ट भी नज़र आ जाएँ..... लेकिन शक्ति और पर्फ़ौरमेंस में वे
बेजोड हैं. इसके विपरीत योरोपियन फ़ाईटर्स की डिज़ाईन और बनावट में शहरी लोगों जैसा
सॉफ़िस्टिकेशन है. नई टेक्नोलोजी के तहत उनमें पायलॉट की सुविधा और सेफ़्टी का भी
ज़्यादा ध्यान रखा गया है. लेकिन एक फ़ाईटिंग मशीन के रूप में रशियन मिग अपने
योरोपियन प्रतिदव्ंदवी से बराबरी करने में सक्षम है.’
“बेसिकली मिग इज़ नॉट सूटेबुल फॉर ट्रेनिंग परपज़.....इट इज़ टू फ़ास्ट एंड
कॉम्पलिकेटेड फ़ॉर ए ट्रेनी”. सुशीलेन्द्र ने कहा.
“मैंने कहीं पढा
है कि ‘ला फ़ॉनटेन कमीटी’ ने बहुत पहले ही नए पायलॉटों की ट्रेनिंग के लिए एडवांस
जेट ट्रेनर मुहैया कराने की सिफ़ारिश की थी.” वह जल्दी से बोला.
“फ़्लाइंग प्रशिक्षण के लिए किसी एडवांस जेट ट्रेनर का नहीं होना मिग क्रैशों
का एक बडा कारण है.” सुशीलेन्द्र ने अपनी बात पूरी की.
तबरेज़ के एक फ़ाईटर पायलॉट होने की वजह से वह अखबार और पत्रिकाओं में एयर फ़ोर्स
से संबन्धित हर समाचार और लेख बडी तंमयता से पढता था. एक उच्च स्तरीय पत्रिका में
प्रकाशित इंवेसटिगेटिव रिपोर्ट में दिए गए आँकडे
उसे अक्षरशः याद थे. ‘सन 1970 से 2008 के बीच लगभग 500 की संख्या में मिग
क्रैश हुए जिसमे 180 से अधिक पायलॉटों की जानें गईं.’ यहाँ तक कि उस लेख में मिग
को ‘फ़्लाइंग कॉफ़िन’ की संज्ञा दी गई थी. जग ज़ाहिर था कि उनके उत्पादन या रख-रखाव
में कहीं न कहीं कोई बडी चूक हो रही थी.
शुरुआत में सोवियत संघ से मिग के खराब पार्टस के ओरिजिनल रिप्लेसमेंट आसानी से
उपलब्ध हो जाते थे. लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद विघटित गणकों में स्पेयर पार्टस
सप्लाई करने की जैसे होड सी लग गई. इस प्रतिस्पर्धा और उससे पैदा होने वाले भ्रष्टाचार
के माहौल में शायद उनकी गुणवनता कायम नहीं रखी जा सकी.
दूसरी तरफ़ देश की प्रतिष्ठित एरोनॉटिकल कम्पनी द्वारा 1970 के दशक में निर्मित
मिगों की गुणवंता शुरु से ही शंका के घेरे में रही. पत्रकार ने तो यहाँ तक लिखा था
कि लगातार होने वाले कुछ मिग क्रैशों का कारण उनके उत्पादन के दौरान इंजन के
बियरिंग का ग़लत फ़िट किया जाना था. इस लेख में बढती हुई दुर्घटनाओं का मुख्य कारण देश
में निर्मित मिगों की गुणवंता का निम्न स्तर बताया गया था.
खाने के बाद सुशीलेन्द्र ने अपनी कार से उसे वापस गेस्ट हाउस छोड दिया. थकावट
के कारण बिस्तर पर पहुँचते ही उसे नींद आ गई. लेकिन सारी रात वह अजीब से सपने देखता
रहा.
वह अपने गाँव में था. मकई के खेत में सुन्दर भुट्टे लगे थे. उसे ताज़े भुने,
सोंधे-सोंधे भुट्टे बडे पसन्द थे. लेकिन भुट्टा तोडने के लिए वह जैसे ही खेत में
घुसा, भुट्टों के पौधे सन-सनाते हुए तेज़ी से लम्बाई में बढने लगे. उसने एक भुट्टे
को पकडने के लिए हाथ आगे बढाया तो वह उसकी पहुँच से बहुत ऊपर निकल गया. देखते ही देखते भुट्टों
के नाज़ुक हरे भरे पौधे लम्बे लम्बे विशालकाय पेडों में तबदील हो गए और वह उनके बीच
बिल्कुल घिर सा गया. वह वहाँ से निकलना चाहता था. लेकिन अपनी पूरी कोशिश के बावजूद
वह आगे नहीं बढ पा रहा था. रास्ता बडा दुर्गम था. आगे बढने के लिए उसे पेडों के
तनों के बीच जगह बनानी पड रही थी.
उसने अपने चारों ओर नज़र दौडाई. विशाल भुट्टों से निकले काले-भूरे रस्सी जैसे
बाल पेडों के तनों के चारों ओर लटक रहे थे. उन्हें पकड कर वह एक पेड पर चढने में
सफ़ल हो गया. धीरे धीरे वह और ऊपर चढता गया. काफ़ी ऊपर पहुँचने पर उसने देखा कि एक बहुत
बडा पक्षी तने से लगे भुट्टे पर बैठा उसके सेब जितने बडे बडे दाने अपने चोंच से
नोच नोच कर खा रहा है. वहाँ से निकलने की गरज से उसने झपट कर पक्षी के दोनों पैर मज़बूती
से पकड लिए. पक्षी तेज़ आवाज़ करता हुआ उडा और उसे ले कर पेडों के ऊपर आकाश में मंडराने
लगा.
अचानक उसकी नींद खुल गई. भोर का उजाला खिडकी के शीशों से अन्दर आने की कोशिश
कर रहा था. एयर कंडीशनिंग के बावजूद उसका शरीर पसीने से भीग गया था. वह बिस्तर से
उठ कर एयर फ़ोर्स स्टेशन में एक और लंबा दिन गुज़ारने की तैयारी करने लगा.
रतन सिंह का बनाया नाश्ता अभी उसने खत्म ही किया था कि कोई उससे मिलने गेस्ट
हाउस आ गया. वही धोबी था जिससे कल उसकी मुलाक़ात कैंटीन के पास हुई थी. उसके हाथों
में अखबार में लिपटे, तह किए हुए कुछ कपडे थे.
“साहब ! ये कपडे ख़ान सर के हैं. उन्होंने मुझे धोने को दिए थे. कल कैंटीन के
पास आपको देना मुझे ठीक नहीं मालूम हुआ – सोंचा, गेस्ट हाउस ही ला कर दे दूँगा.”
यह बात बिल्कुल अप्रतयाशित थी. उसने धोबी के हाथ से कपडे ले लिए. यूनिफ़ार्म का
एक जोडा, एक पैंट और एक शर्ट – कुल चार कपडे थे. कमरे में जा कर उसने ब्रीफ़ केस में उन्हें
संभाल कर रखा और वापस लॉबी में धोबी के पास आ गया.
“आपका पहले का भी कोई हिसाब बाक़ी है?” उसने धोबी से पूछा.
“नहीं साहब ! सर तो तुरंत पैसा दे देते थे.”
“और इस बार का कितना हुआ?”
“रहने दो साहब.” धोबी पैसा नहीं लेना चाहता था.
“अरे नहीं भाई .....ऐसा न कहो ...... लो इसे रख लो.” उसने पचास का नोट उसकी ओर
बढाया.
“मैडम आएँगी तो हिसाब कर लूँगा.” वह जाने के लिए मुडते हुए बोला.
“चिंता न करो..... एक ही बात है.” उसने आगे बढ कर पैसा उसकी मुट्ठी में पकडा
दिया.
धोबी के जाने के थोडी देर बाद ही सी.ओ. विजय हांडा का फ़ोन आया था. उसने बताया
कि तेजपुर स्टेशन के चीफ कमांडिंग ऑफिसर, एयर वाईस मार्शल दीपक चौहान ठीक चार बजे अपने
ऑफ़िस में उससे मिलना चाहते हैं. मीटिंग के लिए वह उसे अपने साथ ले कर जाएगा.
सी.ओ. उसे लेने ठीक समय पर गेस्ट हाउस आ गया था.
“आज सुबह ख़बर आई है कि डरांग डिस्ट्रिक्ट के एक गाँव के लोगों ने उस दिन दस
बजे एक मिग को तेज़ी से पठारों की ओर जाते देखा था. लेकिन इसके आगे कुछ पता नहीं
चला. न तो किसी ने कोई धमाका सुना और न ही आसमान में कोई रौशनी या धुँआ देखे जाने
की ख़बर है. अनुमान है कि क्रैश डरांग डिस्ट्रिक्ट के बाद के ऊँचे पहाडों में हुआ
होगा.” विजय हांडा ने उसे बताया.
“लेकिन सी.ओ. साहब........! अगर क्रैश के पहले दोनों पायलॉट बेल आउट कर गए
होंगे तो.........? शायद वे घने जंगल में कहीं फँसे हों........वी मस्ट डू समथिंग
फ़ॉर देम .......!” रात का दु:स्वप्न उसकी आँखों के सामने फिर कौंधने लगा. सपने और
हक़ीक़त जैसे एक दूसरे में गडमड होने लगे थे.
“नो फ़्रेंड .....! यू नीड नॉट वरी..... जिस जगह से मिग को देखे जाने की सूचना
मिली है उसके ठीक आगे तीखा ऊँचा पहाड है...... दिस वॉज़ ए कॉम्बैट एक्सर्साईज़......
विज़िबलिटी वॉज़ वेरी लो...... देयर वुड जस्ट नॉट बी एनफ़ टाईम फ़ॉर इजेक्शन ......!” सी.ओ.
ने एक ख़ुशख़बरी की तरह यह बात कही थी.
चीफ़ से मिलने दोनों साथ साथ कमांड ऑफिस पहुँचे. अपने शानदार ऑफिस में सागवान
के विशाल टेबुल के पीछे बैठा एयर वाइस मार्शल दीपक चौहान ठिगना सा दिख रहा था.
रिफ्रेश्मेंट के लिए पूछे जाने पर उसने शिष्टतापूर्वक मना कर दिया. चीफ सीधा विषय पर आ गया. उसका टोन कोई मिलिटरी ब्रीफ पढने
जैसा था.
“घटना के समय तबरेज़ का मिग हिमालय की पहाडियों पर से गुज़र
रहा था. वहाँ पाईन के बीहड जंगल हैं. पेडों की उँचाई साठ से अस्सी फिट है. ऐसे
भौगोलिक परिवेश में दुर्घटनाग्रस्त मिग को ढूँढना बडा कठिन कार्य है. खराब मौसम ने
स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है. अमरीका सरकार से उस समय के सैटेलाईट इमेज
भेजने की दर्खास्त की गई है. यदि ये प्राप्त हो गए तो क्रैश साईट की एक्यूरेट
स्थिति मिल सकती है.”
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे. एक ऐसे ड्रामे
का मंचन हो रहा था जिसमें विधि ने उसे अपना पार्ट अदा करने की छूट तो दी थी लेकिन
स्क्रिप्ट पहले ही लिख दिया था. परिस्थिति ऐसी कि उसकी अपनी मर्ज़ी पर यहाँ कुछ भी
नहीं था. ज़िंदगी में पहली बार वह अपने आप को इतना मजबूर पा रहा था.
उसे अपने पिता की बात याद आई जो उन्होंने एयर फोर्स स्टेशन
के लिए रवाना होते समय उससे कही थी. ‘बेटा, वहाँ जाकर जब तुम सबसे बडे अधिकारी से
मिलो तो उनसे कहना कि मैं अपना बेटा उनसे वापस नहीं माँग रहा......! लेकिन मुझे यह
फ़ौरन बताया जाय कि वह कौन सी परिस्थितियाँ थीं जिनमे हमने तबरेज़ को खो दिया.’
“दुर्घटना के समय मिग में इंधन नाम मात्र ही था. क्रैश के
बाद कोई बडी आग लगने की संभावना नहीं है. फिर उस दिन से लगातार बारिश भी हो रही
है. इन परिस्थितियों में थर्मल इमेजिंग से भी क्रैश साईट का पता नहीं लगाया जा
सकता है.” चीफ जैसे उसके पिता की बात का जवाब देने की कोशिश कर रहा था.
‘उनसे कहना कि जिस दिन तबरेज़ ने एक फ़ाईटर पायलॉट का जीवन
चुना था, उसी दिन मैंने सोच लिया था कि बुढापे के दिनों में शायद वह मेरे साथ न होगा.
आज मैं अपने भाग्य की दुहाई नहीं दे रहा. लेकिन मैं यह ज़रूर जानना चाहता हूँ कि मेरे
बेटे के आखरी क्षण कब, कहाँ और कैसे गुज़रे.’
“मिग का क्रैश इन्हीं पहाडों में कहीं हुआ है. रॉयल बर्मीज़
आर्मी खोज कार्य में बी.एस.एफ़ की मदद कर रही है. लेकिन हमारे खोजी दस्ते अभी तक
दुर्घटनाग्रस्त मिग के मलबे तक नहीं पहुँच पाए हैं.” चीफ़ कमांडिंग ऑफ़िसर ने आगे
कहा.
‘तबरेज़ के अंतिम अवशेष भारतीय सेना के सुपरीम कमांडर, महा-महीम
राष्ट्रपति पर मेरा कर्ज़ है, जिसे लौटाना उनका फ़र्ज़ है. मैं उसे घर लाकर उसकी आखरी
रस्में विधिपूर्वक अदा करना चाहता हूँ.’ उसके कानों में पिता की आवाज़ फिर गूँजी.
एयर वाइस मार्शल दीपक चौहान ने एक गहरी सांस ली. वह ख़ामोश
हो गया था. ऐसा मालूम होता था जैसे उसने अभी अभी एक लम्बा प्रेस मीट ऐडरेस किया हो
और थक गया हो. मेज़ पर से सुंदर टी कोस्टर से ढका गिलास उठा कर वह अपनी प्यास बुझाने
लगा.
अगले दिन उसने एयर फ़ोर्स स्टेशन छोड दिया था. वह घर वापस जा
रहा था. रेलगाडी गुवाहाटी रेल्वे स्टेशन से छूटने वाली थी. खुशमिज़ाज सार्जेंट उसे
विदा करने स्टेशन आया था. लेकिन आज वह बिल्कुल खामोश था.
जैसे ही ट्रेन
प्लेटफ़ार्म से छूटी उसकी आँखों में आँसुओं का इक सैलाब उमड आया. पहली बार उसे अपनी
क्षति का एहसास हुआ. गुज़रे हुए पिछ्ले कुछ दिन कितने निरर्थक थे. उसकी सारी
कोशिशें बेकार गई थीं. उसके दिल में एक हूक उठी. तबरेज़ को लिए बिना वह अकेला ही घर
लौट रहा था.
उसने ट्रेन की खिडकी से बाहर देखा. काले घने बादल किसी
अपशकुन की तरह आकाश में घिर आए थे. उन्होंने कफ़न की
तरह तेजस्वी सूरज को चारों तरफ़ से ढँक लिया था जिसकी सलवटों से प्रकाश की किरणें बाहर
नहीं निकल पा रही थीं.
उसने सोचा, ‘आज रात ज़ोरों की बारिश होगी.’
वागर्थ - मई ' 2013