क्यों रौशनी हुई नहीं चराग़ ये जले तो थे
कुछ आप ने कहा नहीं गो लब मगर हिले तो थे
हज़ार साल तक करें किसी का इंतज़ार हम
तवील ज़िन्दगी नहीं बुलन्द हौसले तो थे
मन्ज़िलें तो दूर थीं औ काफिले बिछड गए
मन्ज़िलों की खोज में हम इक सहर चले तो थे
राहे जुनूने – वस्ल में सिमट गईं थी दूरियाँ
ज़माने की निगाह में हज़ार फासले तो थे
ये हाथ क्यों उठे नहीं ये दिल से कुछ न पूछिये
गो शाह के मज़ार पे मुराद ले गए तो थे
अजनबी से शहर में ‘जमील’ अजनबी हुए
यहीं कहीं किसी डगर हम आप से मिले तो थे
(वागार्थ, मार्च ' 2012)