The fleeting joys and the lingering sorrows...... the desires and the desperation...... battles won and the battles lost...... the tyranny of time!
Here is a cavalcade of memories and a colourful collage of frozen snapshots from the journey of life.

Sunday, August 18, 2013

परी

गुज़ारी थी तुमने कितनी ही रातें
बैठे सिरहाने नन्हीं परी के
ज्वर से तपते माथे पर
बर्फ की पट्टियां बदलते बदलते

नर्म तलवों को हथेली से
कुछ  इस  तरह सहलाते
कि जैसे उनका सारा ताप
सोख लोगे तुम
अपने ही शरीर में
जिस तरह कर लिया था आत्मसात
नीलकण्ठ ने
देवताओं की रक्षा के लिये
सागर मंथन का सारा विष

लेकिन वह नन्हीं परी
तौल कर हवा में अपने परों को
उड गई है आज
विस्तृत आकाश में

कुछ याद करो वह घडियां तुम
उन लम्बी काली रातों में
वे क्षण जो तुम्हारे अपने थे
जो मूक पडे थे वर्षों से
अब मुखरित हो कर कहते हैं
क्या मुझसे दोस्ती करोगे