चेहरे
तलाशते
रहे इंसानियत के हम
जब तक मीयादे-ज़िन्दगी बाक़ी रही सनम
मंज़िल का कुछ पता नहीं किस ओर रह गई
राहों ने कम किए हैं बहुत ज़िन्दगी के ग़म
इद्दत के चन्द रोज़ भी काटे नहीं कटे
भरते थे दम की हश्र में भी होंगे हम क़दम
पत्थर तराशते रहे सब्रो-जबर के साथ
हीरे निखारने का था कुछ उनको यूँ भरम
चाँदी के बर्तनों में खाने का जश्न है
भूखा न रहे कोई यह किसका है अब धरम
नेज़ों की नोक तुंग करेंगे इसी तरह
अपने सरों से चोट दिए जा रहे हैं हम
शिक्वे-शिकायतों का क्या क़िस्सा करें ‘जमील’
चाहत जो कम हुई थी तो रुसवा हुए हैं कम
जब तक मीयादे-ज़िन्दगी बाक़ी रही सनम
मंज़िल का कुछ पता नहीं किस ओर रह गई
राहों ने कम किए हैं बहुत ज़िन्दगी के ग़म
इद्दत के चन्द रोज़ भी काटे नहीं कटे
भरते थे दम की हश्र में भी होंगे हम क़दम
पत्थर तराशते रहे सब्रो-जबर के साथ
हीरे निखारने का था कुछ उनको यूँ भरम
चाँदी के बर्तनों में खाने का जश्न है
भूखा न रहे कोई यह किसका है अब धरम
नेज़ों की नोक तुंग करेंगे इसी तरह
अपने सरों से चोट दिए जा रहे हैं हम
शिक्वे-शिकायतों का क्या क़िस्सा करें ‘जमील’
चाहत जो कम हुई थी तो रुसवा हुए हैं कम